Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शनिवार, 22 मई 2021

मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है

मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है |

कहीं कोई दुहाई दे रहा है|

 

अगर तूने नहीं गलती किया तो,

बता तू क्यों सफाई दे रहा है|

 

तुम्हारे क़ैद में महफूज रहता,

मुझे तू क्यों रिहाई दे रहा है|

 

दिखाया जा रहा जो कुछ छिपाकर,

वही हमको दिखाई दे रहा है|

 

उसी से प्यार मुझको हो गया है,

मुझे जो बेवफाई दे रहा है |

 

जहन्नुम में जगह खाली नहीं नहीं है,

भले को क्यों बुराई दे रहा है|

 

न अब परिवार में कुछ पल बिताना,

ये रिश्तों में ढिठाई दे रहा है|

 

बहुत मुश्किल घड़ी है वक्त हमको,

कुआँ इक ओर खाई दे रहा है|

 

सियासत का सबक यारों में मुझको,

मुसलमाँ, सिख, ईसाई दे रहा है|

 

मिले हम खुश हुए लेकिन ये गम है,

ये मिलना कल जुदाई दे रहा है|

 

सही लिखने का जज्बा है ‘अनघ’ जो,

कलम को रोशनाई दे रहा है|

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