हमारा दिल बहुत सहमा हुआ है |
किसी से क्या बताएं क्या हुआ है |
निकलना फिर घरों से रुक गया है,
शहर में फिर कहीं दंगा हुआ है |
सभी सम्भ्रान्त अन्धे हो गए हैं,
व्यवस्थाओं का रुख बहरा हुआ है |
तरक्की हो रही है फाइलों में,
हकीकत में शहर ठहरा हुआ है |
किसी पर जब यकीं हम दिल से करते,
हमारे साथ तब धोखा हुआ है |
तुम्हीं अहसास के मारे नहीं हो,
हमारे साथ भी ऐसा हुआ है |
हवा में जहर है पानी भी दूषित,
तरक्की का सिला इतना हुआ है |
‘अनघ’ सब चीर हरते द्रौपदी की,
दु:शासन कब भला नंगा हुआ है |
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