Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

रविवार, 30 अगस्त 2009

बात करते हैं हम मुहब्बत की

बात करते हैं हम मुहब्बत की, और हम नफ़रतों में जीते हैं।
खामियाँ गैर की बताते हैं, खुद बुरी आदतों में जीते हैं।

चाहते हैं सभी बढ़ें आगे, तेज रफ़्तार जिन्दगी की है,
भागते दौड़ते जमाने में, हम बड़ी फ़ुरसतों में जीते हैं।

आज तो ग़म है बेबसी भी है, जिन्दगी कट रही है मुश्किल से,
आने वाला समय भला होगा, हम इन्हीं हसरतों में जीते हैं।

आज के दौर में कठिन जीना और आसान है यहाँ मरना,
कामयाबी बडी़ हमारी है, हम जो इन हालतों में जीते हैं।

चीज जो मिल गई वो मिट्टी है और जो खो गया वो सोना था,
जो ‘अनघ’ चीज मिल नहीं सकती, हम उन्हीं चाहतों में जीते हैं।
 

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शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मुझे तनहाइयां भाती नहीं है

मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं। 
मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नहीं है।

तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,
सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।

गये हो दूर तुम जबसे यहाँ से,
बहारें भी यहाँ आती नहीं है।

तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
वहाँ कोयल भी अब गाती नहीं है।

तुझे अपना बनाना चाहता था,
कसक दिल की अभी जाती नहीं है।

शिकायत है ‘अनघ’ किस्मत से अपने,
मुझे ये तुमसे मिलवाती नहीं है।

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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

मंजिल को पाने की खातिर

मंजिल को पाने की खातिर, कोई राह बनानी होगी ।
दूर अंधेरे को करने को, शम्मा एक जलानी होगी ।

अंगारों पर चलना होगा , काँटों पर सोना होगा ;
कितने ख्वाब तोड़ने होंगे, कितनी चाह मिटानी होगी ।

बस दो ही तो राहें अपने , इस जीवन में होती हैं ;
अच्छी राह चुनो तो अच्छा, बुरी राह नादानी होगी ।

इतना भी आसान नहीं है, मंजिल को यूँ पा लेना ;
कुछ पाने की खातिर तुमको, देनी कुछ कुर्बानी होगी।

लीक से हटकर चलना तो अच्छा है लेकिन मुश्किल है;
दिल में हिम्मत जारी रखोगे तो बड़ी आसानी होगी ।

दुनिया वाले कुछ बोलेंगे, जैसी उनकी आदत है
लेकिन जब मंजिल पा लोगे, दुनिया पानी-पानी होगी ।

पैदा होकर मर जाते हैं, जाने कितने लोग यहाँ ;
आज ‘अनघ’ कुछ नया करो तो, तेरी अमर कहानी होगी ।

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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

है कठिन इस जिंदगी के हादसों को

है कठिन इस जिंदगी के हादसों को रोकना ।
मुस्कराहट रोकना या आसुओं को रोकना ।

वक्त कैसा आएगा आगे न जाने ये कोई ,
इसलिए मुश्किल है शायद मुश्किलों को रोकना ।

मंजिलों की ओर जाने के बने हैं वास्ते,
इसलिए मुमकिन नहीं है रास्तों को रोकना ।

इनको होना था तभी तो हो गए होते गए ,
चाहते तो हम भी थे इन फासलों को रोकना ।

दोस्तों के रूप में अक्सर छुपे रहते ‘अनघ’,
इसलिये आसां नहीं है दुश्मनों को रोकना ।

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