Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शनिवार, 30 मई 2009

अब किसी पर नहीं रह गया ऐतबार

अब किसी पर नहीं रह गया ऐतबार,
जो भी मेरे थे मुझको न मेरे लगे |
मुझको अपनों ने लूटा बहुत इस कदर,
दोस्त भी जो मिले तो लुटेरे लग |

गैर हो तो मैं शिकवा शिकायत करूँ,
अब मैं अपनों की कैसे खिलाफत करूँ,
जब कभी कहना चाहा कोई बात तो,
रोकने के लिए कितने घेरे लगे |

रात जाने लगी फ़िर सवेरा हुआ,
दूर फ़िर भी न मन का अँधेरा हुआ,
रौशनी ने दिए इतने धोखे मुझे,
ये उजाले भी मुझको अंधेरे लगे |
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मुहब्बत है मुहब्बत है मुझे तुमसे मुहब्बत है।

मुहब्बत है मुहब्बत है मुझे तुमसे मुहब्बत है।
जरुरत है जरुरत है मुझे तेरी जरुरत है |

है गोरा रंग तेरा काली आँखें सुर्ख लब तेरे,
कि चाहत है हाँ चाहत है मुझे इनकी ही चाहत है।

तुम इतनी खूबसूरत हो कि हर तारीफ़ कम होगी,
कयामत है कयामत है हुश्न तेरा कयामत है ।

खुदाई इश्क है तेरा और तू है खुदा मेरी,
इबादत है इबादत है इश्क मेरा इबादत है।

मुझे भी देख लेते हो कभी तुम अपनी आँखों से,
इनायत है इनायत है तुम्हारी ये इनायत है।

तसव्वुर में तुम्हें लाता हूँ तो मुझको ऐसा लगता है,
जियारत है जियारत है यही तेरी जियारत है।

ये मेरा दिल लो तुम ले लो जैसे चाहो इस से खेलो,
इजाज़त है इजाज़त है तुम्हें इसकी इजाज़त है।

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सच बताया ये दोष मेरा था।

सच बताया ये दोष मेरा था।
ग़म उठाया ये दोष मेरा था।

दर्द से रोना चाहिये था मुझे,
मुस्कुराया ये दोष मेरा था।

सर झुकाना नहीं था मुझको जहाँ,
सर झुकाया ये दोष मेरा था।


नफ़रतों का जहान है फ़िर भी,
दिल लगाया ये दोष मेरा था।

 

दोस्तों के भी दुश्मनों के भी,
काम आया ये दोष मेरा था।


यार रूठे न 'अनघ' इस खातिर,
सब लुटाया ये दोष मेरा था। 

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गुरुवार, 14 मई 2009

सबसे प्यारा है महबूब का गम

शहर से बाहर होने के कारण मैं ४-५ दिन विलम्ब से आप को नई रचना दे रहा हूँ।आशा है आप इस देर को माफ़ करेंगे......

सबसे प्यारा है ये महबूब का ग़म। 

सबसे न्यारा है ये महबूब का ग़म।

 

ग़म की दुनिया का इक चमकता हुआ, 

इक सितारा है ये महबूब का ग़म। 

 

जिन्दगी ये वीरान जीने को, 

इक सहारा है ये महबूब का ग़म। 

 

और सब ग़म तो भंवर जैसे हैं, 

बस किनारा है ये महबूब का ग़म। 

 

और कुछ भी मुझे गंवारा नहीं, 

बस गंवारा है ये महबूब का ग़म। 

 

सारी दुनिया चलो तुम्हारी है, 

जो हमारा है ये महबूब का ग़म।

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