Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

कुछ बुरे हैं कुछ भले किरदार हैं

कुछ बुरे हैं कुछ भले किरदार हैं |
इस जहाँ में फूल हैं कुछ खार हैं |

आप कीचड़ में न पत्थर फेकिए,
राजनीतिक चोट के आसार हैं |
 
कम पढ़े जो काम करते हैं बहुत,
जो पढ़े हैं काम से लाचार हैं |
 
चैन से वो झोपड़ी में सो गए,
जागते वो,जिनके बंगले,कार हैं |
 
मृग ने शावक से कहा जाना नहीं,
उस तरफ इंसान हैं, खूंखार हैं |
 
असलियत में मित्र कोई भी नहीं,
फेसबुक पर सैकड़ों हैं, हज़ार हैं |
 
जोड़ने को जब बहुत से एप्स हैं,
तब बिखरने क्यों लगे परिवार हैं | 

( काव्योदय के फ़िलबदीह 140 से हासिल )
 Copyright@PBChaturvedi