Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

यही अब दोस्तों की दोस्ती है

एक ग़ज़ल ( 'मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन'  पर आधारित ) प्रस्तुत है...

यही अब दोस्तों की दोस्ती है |

नहीं अब हाल तक पूछा कभी है |


ठहाके मार के हंसना, बिहंसना

नहीं भूला मुझे वो पल अभी है |


उदासी दिख रही चेहरों पे ज्यादा,

कहीं पे खो गई जिन्दादिली है |


बिना बातों के वो बातें बनाना,

उन्ही बातों की अब शायद कमी है |


किसी के पास मंजिल का पता है,

किसी के दिल की दुनिया लुट गयी है |


यही तो ज़िंदगी का फलसफा है,

कहीं खुशियाँ कहीं वीरानगी है |


जिए तो जा रहे हैं ज़िंदगी, पर

ये लगता है कहीं कोई कमी है |


अभी खुशबू नहीं छाई फिजां में,

अँधेरे में अभी तक रौशनी है |


बुरा मत बोलना, सुनना, न कहना

किसी ने खूब ये बातें कही है |


‘अनघ’ आता नहीं आनन्द तब भी,

बहुत आराम में गर ज़िंदगी है |  
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