Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

रविवार, 26 जुलाई 2009

चाहे जितना कष्ट उठा ले

आज अपनी एक ऐसी रचना यहाँ दे रहा हूँ जो वाराणसी के एक मशहूर गायक श्री चन्द्रशेखर चक्रवर्ती जी ने गायी है और यह रचना राग दुर्गा में उनके द्वारा निबद्ध की गयी है। इस ग़ज़ल का दूसरा शेर तथाकथित डान (अपराधी) के सन्दर्भ में तथा चौथा शेर भारतीय तथा पाश्चात्य संगीत के लिये है।आप सभी प्रबुद्धजन हैं ये अर्थ बताने की जरुरत नही है पर इच्छा हुई तो लिख दिया,आशा है आप इसके लिये नाराज़ नही होंगे।

चाहे जितना कष्ट उठा ले, अच्छाई-अच्छाई है।
खुल जाता है भेद एक दिन, सच्चाई-सच्चाई है।

होती है महसूस जरूरत, जीवन में इक साथी की,
तनहा जीवन कट नहीं सकता, तनहाई-तनहाई है।

चर्चे खूब हुए हैं तेरे, हर घर में हर महफ़िल में,
चाहे जितनी शोहरत पा ले, रुसवाई-रुसवाई है।

पूरे बदन को झटका देना, हाथों को ऊपर करके,
सच पूछो तो तेरी उम्र की, अँगडा़ई-अँगडा़ई है।

पश्चिम की पुरजोर हवा से, पैर थिरकने लगते हैं,
झूम उठता है सिर मस्ती में, पुरवाई-पुरवाई है।

भाषा अलग, अलग पहनावा, अलग-अलग हम रहतें हैं,
लेकिन हम सब हिन्दुस्तानी, भाई-भाई-भाई हैं।

रहना एक ‘अनघ’ तुम हरदम, जैसे एक-सी रहती है;
सुख-दुख दोनों में बजती है, शहनाई-शहनाई है।

Copyright@PBChaturvedi

शनिवार, 11 जुलाई 2009

दिल का कहना जरूर माना करो

दिल का कहना जरूर माना करो।
ख़ुद को ख़ुद से ख़फ़ा किया ना करो।

चीज कोई अगर तुम्हें चाहिए ,
ख़ुद को उसके लिए दीवाना करो।

जब भला तुम किसी का कर न सको ,
तुम किसी का कभी बुरा ना करो।

आजमाते रहे इसे क्यों भला,
बन्द अब दिल को आजमाना करो।

झूठी तारीफ़ सामने जो करे,
उसको अपना कभी न जाना करो।

तुममें भी है खुदा यकीं ये करो,
तुम ‘अनघ’ यूं  खु़दा-खु़दा ना करो।

Copyright@PBChaturvedi

आप दिल की जुबां समझते हैं

आप दिल की जुबां समझते हैं।
फिर भी अनजान बन के रहते हैं।

खूब मालूम आप को ये है,
हम यहाँ किससे प्यार करते हैं।

है ये दस्तूर ले के देने का,
दिल मेरा ले के अब मुकरते हैं।

मुझको मालूम है अकेले में,
आप मेरे लिए सुबकते हैं।

हर हसीं को गुमा ये होता है,
लोग सारे ये मुझपे मरते हैं।

उनको देखें नहीं भला क्यों जब,
इतना मेरे लिये संवरते हैं।

दूसरा जब भी आप को देखे,
जख्म दिल मे नयें उभरते हैं।

हुश्न में कुछ न कुछ तो है यारों,
इसपे इक बार सब फिसलते हैं।

छुप के देखा है मुझे तुमने भी,
जैसे हम रोज़-रोज़ करते हैं।

कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
कितने इसके लिए तरसते हैं।

मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।

वो जवां जबसे, है नज़र सबकी,
क्यूं , कहाँ, कैसे, कब गुजरते हैं।

हुश्न वालों को शर्म आती नहीं,
इश्क वाले ‘अनघ’ झिझकते हैं।
 

Copyright@PBChaturvedi

शनिवार, 4 जुलाई 2009

बडी़ मुश्किल है बोलो क्या बताएं

बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।

अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।

अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।

फ़रेबों, जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।

सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।

अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।

ये माना मुश्किलों की अब घडी़ है,
‘अनघ’ उम्मीद हम फिर भी लगाएं।

Copyright@PBChaturvedi

दूर रहकर भी मेरे पास हो तुम

दूर रहकर भी मेरे पास हो तुम।
जिसको ढूंढू वही तलाश हो तुम।

प्यार जो पहली-पहली बार हुआ,
मेरे उस प्यार का अह्सास हो तुम।

इस जहाँ में बहुत से चेहरे हैं,
इन सभी में बहुत ही खास हो तुम।

तेरा-मेरा मिलन तो फिर होगा,
ऐ मेरे यार क्यों उदास हो तुम।

तुमसे ही मेरी हर तमन्ना है,
मेरी हसरत हो मेरी आस हो तुम।

Copyright@PBChaturvedi