चाहे जितना कष्ट उठा ले, अच्छाई-अच्छाई है।
खुल जाता है भेद एक दिन, सच्चाई-सच्चाई है।
होती है महसूस जरूरत, जीवन में इक साथी की,
तनहा जीवन कट नहीं सकता, तनहाई-तनहाई है।
चर्चे खूब हुए हैं तेरे, हर घर में हर महफ़िल में,
चाहे जितनी शोहरत पा ले, रुसवाई-रुसवाई है।
पूरे बदन को झटका देना, हाथों को ऊपर करके,
सच पूछो तो तेरी उम्र की, अँगडा़ई-अँगडा़ई है।
पश्चिम की पुरजोर हवा से, पैर थिरकने लगते हैं,
झूम उठता है सिर मस्ती में, पुरवाई-पुरवाई है।
भाषा अलग, अलग पहनावा, अलग-अलग हम रहतें हैं,
लेकिन हम सब हिन्दुस्तानी, भाई-भाई-भाई हैं।
रहना एक ‘अनघ’ तुम हरदम, जैसे एक-सी रहती है;
सुख-दुख दोनों में बजती है, शहनाई-शहनाई है।
Copyright@PBChaturvedi