मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है |
कहीं कोई दुहाई दे रहा है|
अगर तूने नहीं गलती किया तो,
बता तू क्यों सफाई दे रहा है|
तुम्हारे क़ैद में महफूज रहता,
मुझे तू क्यों रिहाई दे रहा है|
दिखाया जा रहा जो कुछ छिपाकर,
वही हमको दिखाई दे रहा है|
उसी से प्यार मुझको हो गया है,
मुझे जो बेवफाई दे रहा है |
जहन्नुम में जगह खाली नहीं नहीं है,
भले को क्यों बुराई दे रहा है|
न अब परिवार में कुछ पल बिताना,
ये रिश्तों में ढिठाई दे रहा है|
बहुत मुश्किल घड़ी है वक्त हमको,
कुआँ इक ओर खाई दे रहा है|
सियासत का सबक यारों में मुझको,
मुसलमाँ, सिख, ईसाई दे रहा है|
मिले हम खुश हुए लेकिन ये गम है,
ये मिलना कल जुदाई दे रहा है|
सही लिखने का जज्बा है ‘अनघ’ जो,
कलम को रोशनाई दे रहा है|
Copyright@PBChaturvedi