आज एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे आप अवश्य पसन्द करेंगे, ऐसी आशा है...
जो जहाँ है परेशान है ।
इस तरह आज इन्सान है।
दिल में इक चोट गहरी-सी है,
और होठों पे मुस्कान है।
कुछ न कुछ ढूँढते हैं सभी,
और खुद से ही अन्जान है।
एक शोला है हर आँख में,
और हर दिल में तूफान है।
मंजिलों का पता ही नहीं,
हर तरफ इक बियाबान है।
आदमी में में ही है देवता,
आदमी में ही शैतान है।
सबसे धोखे ‘अनघ’ वे करें,
और खुशियों का अरमान है।
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