Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

सोमवार, 31 अगस्त 2020

ग़ज़ल : हमारा दिल बहुत सहमा हुआ है

हमारा दिल बहुत सहमा हुआ है |

किसी से क्या बताएं क्या हुआ है |

 

निकलना फिर घरों से रुक गया है,

शहर में फिर कहीं दंगा हुआ है |

 

सभी सम्भ्रान्त अन्धे हो गए हैं,

व्यवस्थाओं का रुख बहरा हुआ है |

 

तरक्की हो रही है फाइलों में,

हकीकत में शहर ठहरा हुआ है |

 

किसी पर जब यकीं हम दिल से करते,

हमारे साथ तब धोखा हुआ है |

 

तुम्हीं अहसास के मारे नहीं हो,

हमारे साथ भी ऐसा हुआ है |

 

हवा में जहर है पानी भी दूषित,

तरक्की का सिला इतना हुआ है |

 

‘अनघ’ सब चीर हरते द्रौपदी की,

दु:शासन कब भला नंगा हुआ है |

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