Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

जाने कितनों का सपना बस सपना ही रह जाता है

जाने कितनों का सपना बस सपना ही रह जाता है।
लक्ष्य नहीं मिलता तो सिर्फ़ तड़पना ही रह जाता है।
 
सोच समझकर काम करें तो सब अच्छा होता वरना,
आखिर में बस रोना और कलपना ही रह जाता है।
 
दौलत ख़त्म हुई तो कोई साथ नहीं फिर देता है,
पूरी दुनिया में तनहा दिल अपना ही रह जाता है। 
 
रोज़ किताबें लिखते हैं वो क्या लिखते मालूम नहीं ?
कैसे लेखक जिनका मक़सद छपना ही रह जाता है !

ऊँचे-ऊँचे पद पर बैठे अधिकारी और ये मंत्री,
लक्ष्य कहो क्यों उनका सिर्फ हड़पना ही रह जाता है !

दुख से उबर जाऊँगा लेकिन प्रश्न ‘अनघ’ ये मथता है,
सोने की क़िस्मत में क्योंकर तपना ही रह जाता है ?


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36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन लिखा है आपने.. चतुर्वेदी जी... हमारी बधाई..

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  2. बहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति ..

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  3. बेहद प्रभावशाली ग़ज़ल है , बधाई स्वीकारें !!

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  5. बहुत सुंदर गज़ल और उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति।

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  6. waaaahhhh gajab ..umda gajal ..or sath hi ise apni awaz me jo apne prastuti di bahut khub .. badhayi :)

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  7. वाहवाही ही काफी नहीं है इन पंक्तियों के लिए। दिल से बधाई इतनी बढ़िया प्रस्‍तुति के लिए।

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  8. bahut sunder gazal aur gayki ka kya kahna

    bahut bahut badhai
    rachana

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  9. चतुर्वेदी जी ! बहुत खुबसूरत ग़ज़ल \आपकी गायकी भी बहुत सुन्दर है !

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  10. बहुत सुंदर ग़ज़ल और प्रस्तुति ......

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  11. लाजवाब गज़ल ... और आवाज़ जो बस मज़ा ही आ गया ...
    कमाल है ...

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  12. बहुत उम्दा ग़ज़ल और उसकी ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  13. बेहतरीन ग़ज़ल..... प्रभावी प्रस्तुति

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  14. प्रसन्न बदन जी आपकी ग़ज़ल आदमी को वाकई सोचने पर मज़बूर करती है।

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