कई दिनों बाद इस ब्लाग पर कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।देर की वजह कुछ तो "समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका] ","बनारस के कवि/शायर "में व्यस्तता थी;कुछ मौसम का भी असर था।दरअसल गर्म मौसम में नेट पर बैठने का मन नहीं करता ; परन्तु अब नई रचनाएँ पोस्ट कर रहा हूँ , आशा है आप का स्नेह हर रचना को मिलेगा ... यहाँ इस रचना के साथ मैं पुनः उपस्थित हूँ-
पास आओ तो बात बन जाए।
दिल मिलाओ तो बात बन जाए।
बात गम से अगर बिगड़ जाए,
मुस्कुराओ तो बात बन जाए।
बीच तेरे मेरे जुदाई है,
याद आओ तो बात बन जाए।
तुमको देखा नहीं कई दिन से,
आ भी जाओ तो बात बन जाए।
साथ मेरे वही मुहब्बत का,
गीत गाओ तो बात बन जाए।
नफरतों से 'अनघ' फ़िजा बिगड़े,
दिल लगाओ तो बात बन जाए।
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