मित्रों, छोटी बहर की ग़ज़लें मुझे बहुत पसन्द हैं; कहना भी और पढ़ना या सुनना भी। आज छोटी बहर की ये ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि ये आप को पसन्द आयेगी। है न..........!
दर्दे-दिल की बात न पूछो।
क्यों ज़ख्मी जज़्बात न पूछो।
घावों को मत और कुरेदो,
कैसे खाई मात न पूछो |
दिल की बेताबी कैसी है,
क्यों बेचैन है रात न पूछो।
देने वाला अपना ही था,
दिल की बेताबी कैसी है,
क्यों बेचैन है रात न पूछो।
देने वाला अपना ही था,
दी किसने, सौगात न पूछो।
बिन बादल के क्यों होती है,
अश्कों की बरसात न पूछो।
मजबूरी में ठीक कहूँगा,
कैसे हैं हालात न पूछो।
बिन बादल के क्यों होती है,
अश्कों की बरसात न पूछो।
मजबूरी में ठीक कहूँगा,
कैसे हैं हालात न पूछो।
आज 'अनघ' गमगीन बहुत है,
आज तो कोई बात न पूछो।
आज तो कोई बात न पूछो।
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