Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ।
मैं तो केवल इतना सोचूँ।

बालिग होकर ये मुश्किल है,
आओ खुद को बच्चा सोचूँ।


सोच रहे हैं सब पैसों की,
लेकिन मैं तो दिल का सोचूँ।

बातों की तलवार चलाए,
कैसे उसको अपना सोचूँ।

ऊपर वाला भी कुछ सोचे,
मैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।


जो भी होगा अच्छा होगा,
मैं बस क्या है करना सोचूँ।
 

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