Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

है कठिन इस जिंदगी के हादसों को

है कठिन इस जिंदगी के हादसों को रोकना ।
मुस्कराहट रोकना या आसुओं को रोकना ।

वक्त कैसा आएगा आगे न जाने ये कोई ,
इसलिए मुश्किल है शायद मुश्किलों को रोकना ।

मंजिलों की ओर जाने के बने हैं वास्ते,
इसलिए मुमकिन नहीं है रास्तों को रोकना ।

इनको होना था तभी तो हो गए होते गए ,
चाहते तो हम भी थे इन फासलों को रोकना ।

दोस्तों के रूप में अक्सर छुपे रहते ‘अनघ’,
इसलिये आसां नहीं है दुश्मनों को रोकना ।

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11 टिप्‍पणियां:

  1. चतुर्वेदी जी,बहुत सुन्दर गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

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  2. मैं ग़ज़ल की व्याकरण बहुत ज्यादा नहीं जानता.....मैं दिल से सोचता हूँ....और उसी से लखता भी हूँ......मात्रा-छंद आदि मुझे नहीं आते.....मगर जितना भी मैं जानता हूँ.....उसकी कसौटी पर आपकी ग़ज़लें मुझे बहुत-बहुत-बहुत भा गयीं...सच....आप अद्भुत लिखते हो प्रस्सन जी.....!!

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  3. है कठिन इस जिंदगी के हादसों को रोकना ।
    मुस्कराहट रोकना या आसुओं को रोकना ।

    bahut khoob....!!

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  4. अच्छा सन्देश देती शानदार ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई.

    परन्तु ग़ज़ल के एक शेर की निम्न पंक्तियों ..............

    इनको होना था तभी तो हो गए होते गए ,

    में दो बार "गए" शब्द का प्रयोग समझ न सका, कहीं टाइपिंग त्रुटी तो नहीं?

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  5. बेहतर गजल । इधर पढ़ नहीं पाया था, पर अब नियमित हूँ । आभार ।

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  6. हलाकि हम भी ग़ज़ल का व्याकरण नहीं जानते परन्तु आपकी रचना मन को भा गयी. आभार.

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  7. बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई. सारे शेर एक से बढकर एक.

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  8. बहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने!

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  9. मुश्किल है चीजों को होने से रोकन. ठीक उसी तरह से आपको भी अच्छी गज़ल कहने से रोकना. बहुत अच्छा लिखा है आपने. मेरी बधाई आपको. ऐसे ही लिखते रहे.

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