बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।
अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।
फ़रेबों, जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।
सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।
अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।
ये माना मुश्किलों की अब घडी़ है,
‘अनघ’ उम्मीद हम फिर भी लगाएं।
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बड़ी सकारात्मक सोच का शेर है.
जवाब देंहटाएंये माना मुश्किलों की ये घडी़ है,
चलो उम्मीद हम फिर भी लगाएं।
ग़ज़ल अच्छी है.
- विजय
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
जवाब देंहटाएंचिरागों को जलाएं या बुझाएं।
ACCHI METERIC GHAZAL...
simple way me kaafi saari baatein
जवाब देंहटाएंअदाकारी हमें आती नही है,
जवाब देंहटाएंग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
लाजवाब शेर है............ poori ग़ज़ल खूबसूरत........... mahaktaa huva ehsaas है
वाह इतना शानदार, ख़ूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर गए!
जवाब देंहटाएंशानदार गजल कही है आपने, बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अदाकारी हमें आती नही है,
जवाब देंहटाएंग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
प्रसन्नजी वदन चतुर्वेदी! बडा अच्छा लगा जब आप हे प्रभु पर पधारे।
आपकी यह कविताओ की दो लाईनो मे मुझे अपनत्व लगा।
हार्दिक मगलभावनाओ सहीत
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
जवाब देंहटाएंचिरागों को जलाएं या बुझाएं।
Umda gazal !
अदाकारी हमें आती नही है,
जवाब देंहटाएंग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
वाह वाह...क्या शेर कहा है...पूरी ग़ज़ल ही बेहद असरदार है...बधाई...
नीरज
आखिरी शेर खूब भाया !
जवाब देंहटाएंआपकी सारी ग़ज़लें बहुत खूबसूरत हैं
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