कई दिनों बाद इस ब्लाग पर कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।देर की वजह कुछ तो "समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका] ","बनारस के कवि/शायर "में व्यस्तता थी;कुछ मौसम का भी असर था।दरअसल गर्म मौसम में नेट पर बैठने का मन नहीं करता ; परन्तु अब नई रचनाएँ पोस्ट कर रहा हूँ , आशा है आप का स्नेह हर रचना को मिलेगा ... यहाँ इस रचना के साथ मैं पुनः उपस्थित हूँ-
पास आओ तो बात बन जाए।
दिल मिलाओ तो बात बन जाए।
बात गम से अगर बिगड़ जाए,
मुस्कुराओ तो बात बन जाए।
बीच तेरे मेरे जुदाई है,
याद आओ तो बात बन जाए।
तुमको देखा नहीं कई दिन से,
आ भी जाओ तो बात बन जाए।
साथ मेरे वही मुहब्बत का,
गीत गाओ तो बात बन जाए।
नफरतों से 'अनघ' फ़िजा बिगड़े,
दिल लगाओ तो बात बन जाए।
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बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
जवाब देंहटाएंतुमको देखा नहीं कई दिन से,
जवाब देंहटाएंआ भी जाओ तो बात बन जाए
बहुत ही खूब, लाजवाब शेर ............
bahut hi sundar sher hai laazbaaw................ek ek panktiya sundar hai
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत शेर..
जवाब देंहटाएंदिल का भा गयी आपकी ग़ज़ल..
are,,
जवाब देंहटाएंgarmi me hi to dil kartaa hai net par,,,
kyoonki,,
साथ मेरे वही मुहब्बत का,
गीत गाओ तो बात बन जाए।
नफरतों से फ़िजा बिगड़ती है ,
जवाब देंहटाएंदिल लगाओ तो बात बन जाए।
अतिसुन्दर ग़ज़ल का सबसे पसंदीदा शेर. पर नफरतों के कारण पर भी तो विचार करना होगा...........
सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
bahut sunder gazal hai
जवाब देंहटाएंgeet gaao to baat ban jaaye
नफरतों से फ़िजा बिगड़ती है ,
जवाब देंहटाएंदिल लगाओ तो बात बन जाए।
खूबसूरत गजल
सभी शेर सुन्दर
Baat to ban gai ji .....Rachana bahut acchi lagi badhai swikaar kare!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/