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Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'
शुक्रवार, 10 सितंबर 2021
न्यायालय में न्याय नहीं है
शनिवार, 22 मई 2021
मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है
मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है |
कहीं कोई दुहाई दे रहा है|
अगर तूने नहीं गलती किया तो,
बता तू क्यों सफाई दे रहा है|
तुम्हारे क़ैद में महफूज रहता,
मुझे तू क्यों रिहाई दे रहा है|
दिखाया जा रहा जो कुछ छिपाकर,
वही हमको दिखाई दे रहा है|
उसी से प्यार मुझको हो गया है,
मुझे जो बेवफाई दे रहा है |
जहन्नुम में जगह खाली नहीं नहीं है,
भले को क्यों बुराई दे रहा है|
न अब परिवार में कुछ पल बिताना,
ये रिश्तों में ढिठाई दे रहा है|
बहुत मुश्किल घड़ी है वक्त हमको,
कुआँ इक ओर खाई दे रहा है|
सियासत का सबक यारों में मुझको,
मुसलमाँ, सिख, ईसाई दे रहा है|
मिले हम खुश हुए लेकिन ये गम है,
ये मिलना कल जुदाई दे रहा है|
सही लिखने का जज्बा है ‘अनघ’ जो,
कलम को रोशनाई दे रहा है|
Copyright@PBChaturvedi
सोमवार, 31 अगस्त 2020
ग़ज़ल : हमारा दिल बहुत सहमा हुआ है
हमारा दिल बहुत सहमा हुआ है |
किसी से क्या बताएं क्या हुआ है |
निकलना फिर घरों से रुक गया है,
शहर में फिर कहीं दंगा हुआ है |
सभी सम्भ्रान्त अन्धे हो गए हैं,
व्यवस्थाओं का रुख बहरा हुआ है |
तरक्की हो रही है फाइलों में,
हकीकत में शहर ठहरा हुआ है |
किसी पर जब यकीं हम दिल से करते,
हमारे साथ तब धोखा हुआ है |
तुम्हीं अहसास के मारे नहीं हो,
हमारे साथ भी ऐसा हुआ है |
हवा में जहर है पानी भी दूषित,
तरक्की का सिला इतना हुआ है |
‘अनघ’ सब चीर हरते द्रौपदी की,
दु:शासन कब भला नंगा हुआ है |
Copyright@PBChaturvedi
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मित्रों ! एक पूर्वप्रकाशित रचना अपनी आवाज में प्रस्तुत कर रहा हूँ , इस रचना का संगीत-संयोजन और चित्र-संयोजन भी मैंने किया है | आप से अनुरोध ...
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प्रस्तुत है एक आत्मविश्लेषणात्मक ग़ज़ल ( बहर :- फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा ) :- औरों से तो झूठ कहोगे , ख़ुद को ...