एक ग़ज़ल ( 'मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन' पर आधारित ) प्रस्तुत है...
यही अब दोस्तों की दोस्ती है |
नहीं अब हाल तक पूछा कभी है |
ठहाके मार के हंसना, बिहंसना
नहीं भूला मुझे वो पल अभी है |
उदासी दिख रही चेहरों पे ज्यादा,
कहीं पे खो गई जिन्दादिली है |
बिना बातों के वो बातें बनाना,
उन्ही बातों की अब शायद कमी है |
किसी के पास मंजिल का पता है,
किसी के दिल की दुनिया लुट गयी है |
यही तो ज़िंदगी का फलसफा है,
कहीं खुशियाँ कहीं वीरानगी है |
जिए तो जा रहे हैं ज़िंदगी, पर
ये लगता है कहीं कोई कमी है |
अभी खुशबू नहीं छाई फिजां में,
अँधेरे में अभी तक रौशनी है |
बुरा मत बोलना, सुनना, न कहना
किसी ने खूब ये बातें कही है |
‘अनघ’ आता नहीं आनन्द तब भी,
बहुत आराम में गर ज़िंदगी है |
Copyright@PBChaturvedi
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें