Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

तुमसे कोई गिला नही है

            बी०म्यूज० के दौरान कुछ जब कोई नया राग सीखता था,तो प्रयास करता था कि उस राग पर कोई रचना लिखूँ।यह उसी का परिणाम है। राग शुद्ध कल्याण में बनायी इसकी धुन मुझे बहुत प्रिय है,रचना तो पसन्द है ही। अब आप को यह कैसी लगती है,ये देखना है.......  

तुमसे कोई गिला नहीं है।
प्यार हमेशा मिला नहीं है।

कांटे रहते उगे चमन में,
फूल हमेशा खिला नहीं है।

जिसको मंज़िल मिले हमेशा,
ऐसा हर काफ़िला नहीं है।

होता आया कई सदी से,
ये पहला सिलसिला नहीं है।

बस अनचाही मिली हमें शय,
जो चाहा वो मिला नहीं है।

जब तक मर्जी नहीं है रब की,
पत्ता तक इक हिला नहीं है

नाजुक है दिल 'अनघ' हमारा,
ये पत्थर का क़िला नहीं है।

Copyright@PBChaturvedi


13 टिप्‍पणियां:

  1. आप का ब्लॉग मैं पड़ा
    अच्छा लगा
    अच्छा लगा कलम का प्रेम
    और प्रेम का कलम ........

    महोदय , आप से निवेदन है कि अपनी अच्छी से अच्छी रचनाये ये मेरे ब्लॉग मंच पर दे |
    इसपर मैं लिखने के लिए आप को स्वीकारत करता हूँ
    आशा है कि आप अपने सबद मंच पर देंगे जैसी ब्लोगेर्स आप को अधिक से अधिक पसंद कर सकते है
    आप का ईमेल होता तो मैं आप के देखने से पहले ही आप को उसका सदस्य bana देता
    आप कि कवितायेँ अच्छी लगी और उनको पड़कर और भी अच्छा
    नमस्कार
    आपका छोटा भाई
    अम्बरीष मिश्रा

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  2. जिस्म का नाजुक हिस्सा है दिल,
    ये पत्थर का किला नहीं है।.....
    kaaphi achchhi lines...
    dil khus ho gaya....

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  3. achchhi ghazal hai. aise hi likhte rahen.

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  4. चतुर्वेदी जी ,
    जय हिंद
    'खमोश' शब्द वहां पर बहर में है मीटर मात्रा के अन्दर
    साहित्य हिन्दुस्तानी में वही रचनाएं छपती हैं जो नियमतः सही होती हैं .ग़ज़ल लिखना उतना आसन नहीं है जितना लोग समझते हैं जबकि हमारे यहाँ ग़ज़लों के पैनल में प्रकांड विद्वान हैं.

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  5. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
    इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

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  6. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी ,
    आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा .
    आपके बारे में पढ़कर मुझे भी अपने शिक्षक की याद आ गई जिसने मेरे नाम में तो नहीं मेरे पिताजी के नाम में गड़बड़ कर दी . पिताजी का नाम तो वेदपाल सिंह था ( जी वो अब इस duniya में नहीं हैं) मगर उन साहब ने bed pal singh कर दिया . अब जहां भी जाता हूँ सब यही कहते हैं कि bed क्यों ? खैर
    ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद

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  7. achchi lagi ye ghazal. ummed hai is blog par aapki aawaaz bhi sunne ko milegi

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  8. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी,

    आपकी रचना से प्रेरित होके यह रचना रची कैसी लगी जरा गुनगुनाएं फिर बताएं.

    हम दम कोई मिला नहीं
    फिर भी कोई गिला नहीं
    महक जाता गुलशन अपना
    पर फूल कोई खिला नहीं
    प्यार सिमट कर रह गया
    पाया कहीं कोई सिला नहीं
    कैसे निभाते बतलाएं जरा
    खुदी से कोई हिला नहीं

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