Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

बिना इंसानियत इन्सान सच्चा हो नहीं सकता

बिना इंसानियत इन्सान सच्चा हो नहीं सकता|
हुआ अपना नहीं जो वो किसी का हो नहीं सकता|
 
अगर तुलना करें इक घाव की पाया जो गैरों से, 
मिला अपनों से उससे तो वो गहरा हो नहीं सकता|
 
यही हम सोचते अक्सर जो अनहोनी कभी होती, 
सरासर झूठ है ये बात, ऐसा हो नहीं सकता|

हमेशा लील जाते हैं बड़े अपनों से छोटों को, 
गिरा सागर में दरिया तो वो दरिया हो नहीं सकता|
 
हुए जब भी अलग माँ-बाप बच्चे पर बुरी बीती, 
पिता का हो नहीं सकता या माँ का हो नहीं सकता|
 
जगह दिल में किसी के भी बड़ी मुश्किल से बनती है, 
अगर दिल टूट जाए फिर भरोसा हो नहीं सकता|
 
न मानो तुम भले लेकिन सही ये बात है तो है, 
गलत मंजिल अगर हो ठीक रस्ता हो नहीं सकता|
 
दिलों को जीत सकते हैं, पिघल सकते हैं पत्थर भी,
मुहब्बत की जुबां से ये कहो क्या हो नहीं सकता|
 
कमी तो दौलतों की रौशनी में हो भी सकती है, 
अगर हो इल्म की दौलत, अँधेरा हो नहीं सकता|
 
सितारे अब कहे जाते यहाँ मशहूर कुछ चेहरे, 
मगर जो रौशनी ना दे सितारा हो नहीं सकता|
 
सभी के वास्ते भगवान ने सौंपी अलग नेमत, 
जो तेरा है वो तेरा है, ‘अनघ’ का हो नहीं सकता| 

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1 टिप्पणी:

  1. मगर जो रौशनी ना दे, सितारा हो नहीं सकता। बेमिसाल ग़ज़ल कही है अनघ जी आपने।

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