आज एक अरसे बाद मैं फिर लौटा हूँ ब्लाग की दुनिया में......है न....! जब मैं वाराणसी से बाहर था तो मेरे कार्यक्षेत्र के एक पुराने एडवोकेट और वाराणसी के काव्य-संसार के एक सशक्त हस्ताक्षर श्री रामदास ‘अकेला’ जी ( जिनकी गज़लें आप ‘बनारस के कवि और शायर/रामदास अकेला’ में पढ़ चुके हैं ) ; इस दुनिया को छोड़ गये । इसी परिस्थिति में पूर्व की लिखी गयी मुझे अपनी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं जो मैं आप से जरूर बांटना चाहूँगा...
कौन जिन्दा है कब तलक जाने!
मुंद ये जायेगी कब पलक जाने!
चार दिन के जमीं पे हैं मेहमां,
फिर बुला लेगा कब फलक जाने!
ज़िन्दगी ज्यों घड़ा है मिट्टी का,
फूट कर कब पड़े छलक जाने!
मौत वो जाम है जिसे पीकर,
सूख जाता है कब हलक जाने!
जो गए ज़िन्दगी से दूर ‘अनघ’,
क्या दिखेगी कभी झलक जाने!
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आईये जानें .... मन क्या है!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
सत्य को परिभाषित करती हुई ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसत्य का बोध कराती रचना ।
जवाब देंहटाएंकहाँ रहे इतने दिन ?
ज़िन्दगी एक घड़ा मिट्टी का,
जवाब देंहटाएंफूट कर कब पड़े छलक जाने ।
आपके सहकर्मी के प्रति गहन श्रद्धांजलि
आप को तलाशता था मैं ब्लागजगत में. आपका कार्यक्षेत्र यदि वाराणसी है तो मै मिलना चाहूँगा. मैं वाराणसी आने वाला हूँ
सत्य को परिभाषित करती हुई ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंबहुत सही!!
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी एक घड़ा मिट्टी का,फूट कर कब पड़े छलक जाने ।
जवाब देंहटाएंमौत वो जाम है जिसे पीकर,सूख जाता है कब हलक जाने ।
बहुत सटीक और बहुत खूब
मौत का फलसफा यूं बयाँ किया है कि होंठ चुप हैं मगर कुछ बोलता है बहुत...
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी एक घड़ा मिट्टी का,
जवाब देंहटाएंफूट कर कब पड़े छलक जाने ।
मौत वो जाम है जिसे पीकर,
सूख जाता है कब हलक जाने
जीवन के अंतिम सत्य से रूबरू कराती ग़ज़ल .. बेहतरीन .....
कहाँ हैं महाराज.?
जवाब देंहटाएंअचानक दिख गये आज...!
दिखे भी तो आध्यात्म में डुबोना चाहते हैं
फिर रहेंगे कब तलाक जाने..!
ज़िन्दगी एक घड़ा मिट्टी का,
जवाब देंहटाएंफूट कर कब पड़े छलक जाने ।
-वाह! बहुत खूब कहा है!
मौत वो जाम है जिसे पीकर,
सूख जाता है कब हलक जाने
सच्ची बात कही !
-स्वागत है आप का इस लम्बे अंतराल के बाद .
Bahut badhiya.....
जवाब देंहटाएंSatya Vachan!
जबर्दस्त ग़ज़ल..इतनी करारी..कि जेहन पर देर तलक अपने निशाँ छोड़ जाती है..जिंदगी के सबसे शाश्वत सवाल के बरअक्स.. और याद रखने के लिये यह हकीकत
जवाब देंहटाएंमौत वो जाम है जिसे पीकर,
सूख जाता है कब हलक जाने ।
बहुत खूब!
वाह !!!!!!!!क्या बात कही है बिलकुल सच और दिल के क़रीब
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी एक घड़ा मिट्टी का,
जवाब देंहटाएंफूट कर कब पड़े छलक जाने....
jee han sach hee to kha hai aap ne....
Jeena jhoot hai Marna sach.....
चार दिन के जमीं पे हैं मेहमां,फिर बुला लेगा कब फलक जाने ।
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़त को बयान करता हुआ ये शेर मन को छूता है
पूरी रचना ही आप मन की व्यथा को व्यक्त कर रही है
रचना निश्चित रूप से सुन्दर है. मौत कब आ कर दस्तक दे दे कोई नहीं जानता. लेकिन जन्म और मरण के बीच हम जीवन को कितना सार्थक जी सके हैं - यह महत्वपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंआपके मित्र एडवोकेट को श्रद्धांजलि ....
जवाब देंहटाएंआपके कहे शे'र ज़िन्दगी और मौत को बखूबी परिभाषित करते हैं .....
ये दूरियाँ क्यों .....??
Der aaye par durust aye.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ,
जवाब देंहटाएंआपकी ताज़ा पोस्ट पढ़ने के बाद हालाँकि .. कुछ ग़म भी ज़रूर हुआ
मगर आपकी हर रचना यात्रा-वृतांत और तस्वीरों ने दिल को छुआ
bahut achchha laga!
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