बहुत दिनों बाद आज कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ..दरअसल मैं लगभग १ माह नेट से दूर रहा...आशा है आप को अवश्य पसंद आएगी ...
यार नहीं जो काम न आए।
प्यार वही जो साथ निभाए।
आता वक्त बुरा तो अक्सर,
जिससे आशा वो ठुकराए।
दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आए।
भाई-भाई अब लड़ते हैं,
आपस में ये बात न आए।
तू-तू,मैं-मैं करती दुनिया,
ऐसे तो हालात न आए।
सच पूछो तो वो ही जवां है,
जो मिट्टी का कर्ज़ चुकाए।
यार नहीं जो काम न आए।
प्यार वही जो साथ निभाए।
आता वक्त बुरा तो अक्सर,
जिससे आशा वो ठुकराए।
दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आए।
भाई-भाई अब लड़ते हैं,
आपस में ये बात न आए।
तू-तू,मैं-मैं करती दुनिया,
ऐसे तो हालात न आए।
सच पूछो तो वो ही जवां है,
जो मिट्टी का कर्ज़ चुकाए।
वक्त 'अनघ' बीतेगा ये जो,
दोबारा फिर हाथ न आए।
दोबारा फिर हाथ न आए।
Copyright@PBChaturvedi
शब्द शब्द दिल पर छा जाए,
जवाब देंहटाएंकितना सुंदर गीत सुनाए...
चतुर्वेदी जी हर पंक्ति लाज़वाब..बढ़िया लगा पढ़ कर ..धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंदिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आए।
बहुत गहरी बात और भाव
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंयार नहीं जो काम न आए।
जवाब देंहटाएंप्यार वही जो साथ निभाए।
आता वक्त बुरा तो अक्सर,
जिससे आशा वो ठुकराए।
bahut sunder lines
aapke dwara likhe gaye ek ek shabd jeevant ho uthe hain....
सच पूछो तो वो ही जवां है,
जवाब देंहटाएंजो मिट्टी का कर्ज़ चुकाए।
वाह, क्या बात कही है.
अच्छी रचना.
आता वक्त बुरा तो अक्सर,
जवाब देंहटाएंजिससे आशा वो ठुकराए।
दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आए।
बहुत अच्छी ग़ज़ल प्रसन्न जी...वाह...लिखते रहें...
नीरज
ji kabhi apni awaz me kuchh sunva
जवाब देंहटाएंआता वक्त बुरा तो अक्सर,
जवाब देंहटाएंजिससे आशा वो ठुकराए।
गहरी बात !
सच पूछो तो वही जवा हैं
जवाब देंहटाएंजो माटी का कर्ज चुकाए।
वक्त लिखता है भाग्य सबका
किसको किससे कब मिलाए।
रिश्ता बने जीवन में ऐसा,
लोगों के लिए मिसाल बन जाए।।
आप तो सब जानते हो महोदय
आपको अब हम क्या समझांए।।
पूरी गज़ल बेहतरीन है, वाह!!
जवाब देंहटाएंदिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जवाब देंहटाएंजिससे काली रात न आए।
लेकिन लोग नहीं कर पाते कोशिशे। बस काली रात कैसे आए इसी का प्रयत्न है चारों ओर। अच्छी रचना के लिए बधाई।
namaskar prasannji!mere blog per tashreef lane ke liye shukriya.achhi gazal kahte hain aap.badhai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ है!
जवाब देंहटाएंदेर आए दुरूस्त आए।
जवाब देंहटाएंसच पूछो तो वो ही जवां है
जो मिट्टी का कर्ज चुकाए
--बहुत बढ़िया शेर।
shukria;
जवाब देंहटाएंKHUBARU GAZAL.
khoobsurat Gazal
जवाब देंहटाएंपंक्तियाँ सार्थक है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका.
वक्त अगर बीतेगा ये भी,
जवाब देंहटाएंदोबारा फिर हाथ न आए।
बहुत सही कहा !
आप की यह ग़ज़ल भी पसदं आई
acchi lagi ghajal...
जवाब देंहटाएं"din mei hi kuchh koshish kr lo
जवाब देंहटाएंjis se kaali raat na aaye.."
waah !!
bahut hi achhaa sher
khoobsurat paigaam detee hua
sari gzl padh kr aanand milaa
दिनों बाद दिखे हैं प्रसन्न साब!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल...छोटी बहर पे कसी हुई!
यार नहीं जो काम न आये
जवाब देंहटाएंप्यार वही जो साथ निभाए
वाह छोटी बहर में लाजवाब ग़ज़ल .....!!
मैं सोच ही रही थी की आजकल नज़र नहीं आ रहे और आप आ गए .....!!
चतुर्वेदीजी,
जवाब देंहटाएंछोटी बहार की ये ग़ज़ल ज़रूरी हिदायतों के साथ एक सच्चा बयान भी है--
'दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आये !'
सुन्दर और प्रेरक ग़ज़ल ! बधाई !!
'मेरा ठिकाना हो नहीं सकता...' पर आपकी प्रतिक्रिया से अवगत हुआ ! आभारी हूँ !!
सप्रीत--आ.
कबीर और दुष्यंत साथ साथ. क्या बात है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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