Copyright@PBChaturvedi प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'

शनिवार, 30 मई 2009

सच बताया ये दोष मेरा था।

सच बताया ये दोष मेरा था।
ग़म उठाया ये दोष मेरा था।

दर्द से रोना चाहिये था मुझे,
मुस्कुराया ये दोष मेरा था।

सर झुकाना नहीं था मुझको जहाँ,
सर झुकाया ये दोष मेरा था।


नफ़रतों का जहान है फ़िर भी,
दिल लगाया ये दोष मेरा था।

 

दोस्तों के भी दुश्मनों के भी,
काम आया ये दोष मेरा था।


यार रूठे न 'अनघ' इस खातिर,
सब लुटाया ये दोष मेरा था। 

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1 टिप्पणी:

  1. दर्द से रोना चाहिये था मुझे,
    मुस्कुराया ये दोष मेरा था।

    लाजवाब है हर शेर...........पर इसका जवाब नहीं

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