क्या! आप ने याद मुझे किया! लीजीए मैं आ गया अपनी इस ग़ज़ल के साथ........
वक्त ये एक-सा नहीं होता।
वक्त किसका बुरा नहीं होता।
वक्त की बात है नहीं कुछ और,
कोई अच्छा-बुरा नहीं होता।
इस जहाँ में नहीं जगह ऐसी,
दर्द कोई जहाँ नहीं होता।
हों चमन में अगर नहीं काटें,
फूल कोई वहाँ नहीं होता।
पल जो ग़मगीन गर नहीं आते,
वक्त ये खुशनुमा नहीं होता।
प्यार क्या है नहीं समझते सब,
गर कोई बेवफा नहीं होता।
जब कसौटी पे वक्त कसता है,
हर कोई तब खरा नहीं होता।
होता भगवान पर यकीं सबको,
जब कोई आसरा नहीं होता।
हर जगह आप ही तो होते हैं,
ऐ ‘अनघ’ दूसरा नहीं होता।
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